बंद मुट्ठी, रेत सी, ये जिंदगी फिसलती गई,
आईने के सामने, बनते संवरते हुए,
ये सूरते बदलती रही ।
बंद मुट्ठी, रेत सी, ये जिंदगी फिसलती गई,
बंद मुट्ठी रेत सी ………
टूट कर जुड़ने,जुड़ के फिर,
टूटने के, दरम्यान ,
ये जिंदगी बिखरती गई।
मृगमरीचिका की तरह,
सपनों के पीछे भागते फिरते हुए
ये जिंदगी गुजरती रही ।
बंद मुट्ठी रेत सी ,ये जिंदगी फिसलती गई ,
बंद मुट्ठी रेत सी ———
संवारा ना उसे, जो है हमको मिला,
ना मिला उसकी तलाश में,
ये जिंदगी भटकती रही।
जीने की चाह, जगा हरेक दिन,
मिटाते रहें हरेक दिन,
ये देख जिंदगी मरती रही ।
बंद मुट्ठी रेत सी, ये जिंदगी फिसलती गई ,
बंद मुट्ठी रेत सी ———-
जुनून मोहब्बत का जो मेरे सीने में है,
वो जुनून तुझमें देखने को,
ये जिंदगी तड़पती रही ।
साथ होकर भी हम,
साथ हो ना सके, ये देखकर,
ये जिंदगी शरमाती रही।
बंद मुट्ठी रेत सी ये जिंदगी फिसलती गई ,
बंद मुट्ठी रेत सी ———–।

अनिता